Chhath Pooja का त्यौहार कार्तिक शुक्ल पक्ष अक्टूबर नवम्बर के महीने में मनाया जाता है। यह दीपावली के षष्ठी (छठा दिन) को मनाया जाता हैं। कुल चार दिनो तक मनता है यह त्यौहार, इस महापर्व में देवी षष्ठी और सूर्य भगवान को प्रसन्न करने के लिए स्त्री और पुरुष दोनो ही व्रत रखते है। यह एक सामूहिक पूजा हैं। और इसकी तैयारी महीनो पहले से शुरू होती है। छठ का व्रत बहुत कठिन होता है। क्योंकि इसमें पूरे दिन व्रत रखके सूर्य देव की पूजा घुटने तक के पानी में खड़े रहकर करनी होती है। लोग अपनी इच्छाओं को लेकर अपनी मनोकामनाएँ माँगते है। हर इच्छा के लिए अलग-अलग डालियाँ / टोकरियाँ अर्पित करते है।
भाईदूज के तीसरे दिन यह व्रत आरम्भ होता है। प्राचीन काल मे प्रारम्भिक वैदिक काल से इसका प्रमाण मिलता है।छठ पूजा हिन्दुमो में मनाया जाने वाला एक बड़ा त्यौहार है। इसमें सूर्य भगवान पूजा की जाती है। ये त्यौहार पूर्वी भारत जैसे-बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, नेपाल में भी मनाया जाता है।
छठ पूजा का यह महापर्व चार दिन तक चलता है इसका पहला दिन नहाय-खाय होता है। इस व्रत के प्रथम दिन व्रती पवित्र स्थान पर स्नान कर नए वस्त्र धारण कर शाकाहारी (सात्विक) भोजन ग्रहण करते हैं। जिसमे सेधा नमक, घी से बना हुआ अरखा चावल, और लौकी की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है।
अगले दिन उपवास आरम्भ होता है। जिसे खरना के नाम से जाना जाता है। इस दिल रात में खीर बनाई जाती है। व्रत रखने वाले लोग यह प्रसाद लेते हैं।
तीसरे दिन डूबते हुए सूरज को अर्ध्य
में दूध अर्पण किया जाता है
चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है।
इस वर्ष छठ पूजा 17 नवंबर 2023 से प्रारम्भ हो रही है, और इसका समापन 20 नवंबर को होगा।
इस साल नहाय-खाय 17 नवंबर को है। इस दिन सूर्योदय 06:45 बजे होगा वही सूर्यास्त शाम 05:27 बजे होगा।
इस साल खरना 18 नवंबर को है। इस दिन का सूर्योदय सुबह 06:46 बजे और सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा।
छठ पूजा का संध्या अर्ध्य 19 नवंबर को दिया जाएगा। 19 नवंबर को सूर्यास्त शाम 05:26 बजे होगा।
इस वर्ष सूर्य को अर्घ्य 20 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन सूर्योदय सुबह 06:47 बजे होगा|
छठी मैया को वेदों में उषा के नाम से जाना जाता है। जिन्हें ब्रह्मा की मानस पुत्री भी कहा गया है। विद्वानो की धारणा है कि सूर्य की पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा दोनो की पूजा की जाती है। अंतिम दिन उषा (सुबह की पहली सूर्य किरण) और शाम को प्रत्युषा (दिन की आखिरी सूर्य किरण) की पूजा की जाती है। जिससे सभी परेशानियों से मुक्ति प्राप्त होती है। तथा सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
विद्वानों की धारणा है कि राजा जनक ने मग पुरोहितो को सूर्य पूजा में आमंत्रित किया था। उन्होंने दुनिया में पहली बार छठ पूजा की परम्परा शुरू की। इसकी परम्परा वेदो से पहले जाती है; क्योंकि ऋवेद में सूर्य देवता की पूजा के साक्ष्य प्राप्त होते है।
महाकाव्यों (महाभारत) मे भी छठ पूजा के साक्ष्य प्राप्त होते है। जिसमे द्रौपती और पांडवों ने महान ऋषि (धौम्य) की सलाह पर छठ अनुष्ठान किया।
यह भी माना जाता है कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी।
छठ पूजा की शुरुआत ऐतिहासिक रूप से सीता मनपत्थर (सीता चरण) मंदिर मुंगेर में गंगा के बीच में एक शिलाखंड पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि माता सीता ने मुंगेर में छठ पर्व मनाया था। इसके बाद ही छठ पूजा की शुरुआत हुई।
यह भी माना जाता है कि छठ माता के आर्शीवाद से सूनी गोद भर जाती है। इसलिए बच्चे के जन्म के छठे दिन षष्ठी देवी पूजन का महत्व है
छठी मैया जिन्हें वैदिक काल मे ऊषा के रूप में माना जाता था, मिथिला मे रनबे माय
तथा भोजपुरी में सविता माई और बंगाली में रनबे ठाकुर के रुप में जाना जाता है।
→ छठी मईया को चढ़ाने वाली कोई भी चीज जूठी और खंडित नही होनी चाहिए।
→ सफाई का विशेष ध्यान रखे
→ प्याज, लहसुन का प्रयोग न करे।
→ व्रत धारण स्त्री-पुरुष को सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए।
सूर्य देवता को जल चढ़ाते समय 108 -बार जाप करने से एकाग्रता बढ़ती है। और सारी मनोकामनाएं पूरी होती है
” आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर, दिवाकर नमस्तुभ्यं, प्रभाकर नमोस्तुते।”
“”ॐ मित्राय नमः, ऊँ खये नमः, ऊँ सूर्याय नमः, ॐ भानवे नमः, ऊँ खगाय नमः, ॐ घृणि सूर्याय नमः, ऊँ पुष्पे नमः, ऊँ हिरण्यगर्भाय नमः, ॐ मरीचये नमः, ऊँ आदित्याय नमः, ऊँ सवित्रे नमः. ॐ अर्काय नमः, ऊँ भास्कराय नमः, ऊँ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नमः ।”
” ऊँ ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते अनुकम्पय माँ भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकरः ॥ – ॐ सूर्याय नमः, ॐ आदित्याय नमः, ऊँ नमो भास्कराय नमः | अर्घ्य समर्पयामि।”
छठ पूजा का ये बेहतरीन गीत जो आप सबको पसंद आयेगा:-
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